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सोमवार, 1 जून 2009

आरटीआई क्षेत्र में बेहतर काम का मिलेगा पुरस्कार

सूचना अधिकार कानून आजाद भारत में आम आदमी को मिला शायद सबसे धारदार हथियार है। यह ऐसा अधिकार है जो गांव की गली में बिछे खड़ंजे की लागत से लेकर सुप्रीम कोर्ट के जजों की माली हैसियत पर भी सवाल पूछने की ताकत देता है। यह कानून जिन लोगों के दम पर चला और दफ्तरों के चक्कर काटते-काटते बेहाल हुए इंसान के हक की आवाज बन सका, लगन के धनी ऐसे लोगों को अब राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किया जा सकेगा। पब्लिक काज रिसर्च फाउंडेशन (पीसीआरएफ) देश भर के चुनिंदा आरटीआई एक्टीविस्ट को नवंबर में पुरस्कृत करेगी। सूचना का अधिकार कानून को और लोकप्रिय बनाने के उद्देश्य से शुरू सूचना का अधिकार-राष्ट्रीय पुरस्कार 2009 में पहले दो पुरस्कार सरकारी दफ्तरों में तैनात उन जनसूचना अधिकारियों के लिए होंगे, जिन्होंने आवदेक को बिना दौड़ाए उसे जानकारी उपलब्ध करा दी। एक पुरस्कार आवेदनों पर फैसला लेने वाले सूचना आयुक्तों के लिए होगा और दो पुरस्कार सूचना आवेदकों के लिए होंगे। सभी पांचों विजेताओं को दो-दो लाख रुपये नकद, ट्राफी और सम्मान पत्र दिया जाएगा। इन पांच के अलावा अंतिम सूची में स्थान बनाने वाले प्रतिभागियों को भी संस्था एक ट्राफी देगी। देश में अपनी तरह के इन पहले पुरस्कारों के सूत्रधार अरविंद केजरीवाल के मुताबिक सभी आवेदन पहली जून से 30 जून तक स्वीकार किए जाएंगे। प्रविष्टियों पर विचार देश के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जेएस वर्मा, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त जेएम लिंगदोह, इंफोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति, अभिनेता आमिर खान, पूर्व राष्ट्रीय बैडमिंटन चैंपियन पुलेला गोपीचंद, नृत्यांगना मल्लिका साराभाई, वरिष्ठ अधिवक्ता फली एस नरीमन, दैनिक जागरण के संपादक संजय गुप्त, एनडीटीवी के अध्यक्ष डा. प्रणय राय और वरिष्ठ पत्रकार मधु त्रेहन का निर्णायक मंडल करेगा।अब आते हैं पुरस्कारों के आधार पर। सूचना आयुक्तों और जनसूचना अधिकारियों के लिए मानक का आधार तो उनके दायित्वों का उचित निर्वहन ही होगा। लेकिन सूचना आवेदन करने वालों की दो श्रेणियां होंगी। केजरीवाल के अनुसार पहली श्रेणी उन लोगों की होगी जिनके आवेदन पर दिसंबर 2008 तक कोई बड़ा फैसला आया हो या उसका बड़ा इंपैक्ट हुआ हो। दूसरी श्रेणी में वे लोग होंगे जिनके आवेदन का जवाब तो नहीं आया, लेकिन उस पर असर उतना ही व्यापक हुआ। आशय यह कि कई बार सरकारी विभाग जवाब देने से तो डरते हैं लेकिन चुपचाप वांछित कार्रवाई भी कर देते हैं। सूचना आवेदकों की इन दोनों श्रेणियों को यह छूट भी है कि वे 2005 में सूचना कानून लागू होने से लेकर दिसंबर 2008 तक के अपने आवदेनों का ब्यौरा भेज सकते हैं।

1 टिप्पणी:

  1. राव गुमानसिंघ
    रानीवाड़ा (मारवाड़) .no. 1 patrkaar hai jalor me.......
    ..
    .jo kahunga sach kahunga or sach k shiwa kuchh nahi ..................OP DHAKA

    जवाब देंहटाएं