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रविवार, 26 अप्रैल 2009

बाबा रामदेव के सवाल पर प्रधानमंत्री की चुप्पी

RANIWARA(jALORE)
मीडिया और कांग्रेसी नेताओं से लेकर टीवी चैनलों पर खींसे निपोरने वाले देश के तथाकथित बुध्दिजीवी देश के प्रधान मंत्री को भले ही ईमानदार प्रधानमंत्री कहकर उनको महिमा मंडित करें, मनमोहन सिंहजी  ने अपनी नैतिकता और ईमानदारी को उसी दिन तिलांजलि दे दी थी जब उन्होंने राज्य सभा का चुनाव असम से जीतने के लिए असम के उस अनाम से गाँव का पता दिया था जिस गाँव को उन्होंने कभी देखा ही नहीं था। मनमोहन सिंह ने प्रधान मंत्री पद तक पहुँचने के लिए अपने आपको असम के कामरूप जिले के  दिसपुर गाँव का निवासी बताया है। अपने आपको राज्य सभा में सुशोभित करने के लिए ये काम अकेले मनमोहन सिंह ही नहीं कर रहे हैं ब्लकि हर पार्टी ने अपने नेताओं को इसी अनैतिक और बेईमानी के रास्ते से राज्यसभा में भेजा है। 

तो बात प्रधान मंत्री की उस चुप्पी की जो उन्होंने अब तक नहीं तोड़ी है। बाबा रामदेव ने जबसे भारत स्वाभिमान ट्रस्ट का गठन किया है, वे बार बार एक ही बात कह रहे हैं कि स्विस बैंकों में जमा देश का अरबों-खरबों रुपया भारत लाया जाए। 

बाबा रामदेव ने हरिद्वार में पतंजलि योगपीठ में प्रवासी भारतीयों के लिए आयोजित योग शिविर में खुलकर कहाकि उन्होंने प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह को इस मुद्दे को लेकर तीन पत्र लिखे हैं, लेकिन उन्होंने आज तक इन पत्रों का जवाब नहीं दिया है। क्या प्रधान मंत्री इस देश के करोड़ों लोगों के बीच निर्विवाद रूप से लोकप्रिय एक संत के पत्र का जवाब देने तक से डरते हैं। बाबा रामदेव ने अपना यह वक्तव्य खुलकर दिया है और इसका आस्था चैनल पर बार बार प्रसारण हो रहा है इसके बावजूद न तो कांग्रेस पार्टी ने, न सरकार ने और न प्रधान मंत्री ने इस बात का नोटिस लिया है। तो क्या यह समझा जाए कि प्रधान मंत्री कार्यालय ने प्रधान मंत्री को बाबारामदेव के इस पत्र के बारे में या टीवी पर लगातार आ रहे उनके वक्तव्य के बारे में नहीं बताया है। या फिर कांग्रेस और प्रधान मंत्री दोनों ही देश की अरबों- खरबों रुपये की इस दौलत को लेकर चुप्पी साधे बैठ गए हैं। 

 
बाबा रामदेव लगातार यह बात कह रहे हैं कि भारत सरकार की अमीरपरस्त और विदेशपरस्त नीतियों का यह सबसे ज्वलंत उदाहरण देश की बहुत बड़ी पूंजी स्विट्जरलैंड और अन्य कई देशों के बैंकों में अवैध रूप से जमा है और सरकार उसे वापस भारत लाने के पर्याप्त प्रयास नहीं कर रही है। गुप्त और काले धन के गढ़ के रूप में कुख्यात स्विस बैंक तथा इस तरह अन्य बैंकों में भारत में रहने वाले कुछ लोगों के लगभग 70 लाख करोड़ रुपये जमा हैं। चोरी-छिपे जमा किए गये इन गुप्त खातों के स्वामी हैं देश के कई बड़े-बड़े नेता, ऊंचे पदों पर बैठे कुछ नौकरशाह और भ्रष्ट व्यापारी तथा तस्कर इत्यादि। सबसे दिलचस्प बात यह है कि ऐसे बैंकों में सबसे ज्यादा रुपया भारत का जमा है। भारत ने इस मामले में अमेरिका और चीन को भी पीछे छोड़ दिया है।

‘70 लाख करोड़ रुपये’ का मतलब क्या होता है, देश की अधिसंख्यक जनता इसका अनुमान भी नहीं लगा सकती। यह इतनी विशाल राशि है कि यदि इसे भारत के सबसे गरीब 7 करोड़ परिवारों यानी 40 प्रतिशत लोगों में बांट दिया जाए तो हर गरीब परिवार को लगभग दस लाख रुपये मिलेंगे। इस संबंध में एक और तथ्य यह भी है कि इस राशि के मात्र 15 प्रतिशत हिस्से से पिछले 60 वर्षों में लिये गये भारत के सारे विदेशी कर्ज चुकाये जा सकते हैं। मंदी से जूझ रहे देश के लिए इस पैसे का मिलना किसी वरदान से कम नहीं होगा।

एक समय था जब स्विसबैंकों  या ऐसे ही अन्य विदेशी बैंकों से कोई जानकारी लेना असंभव था। लेकिन अब ऐसा नहीं रहा। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अमेरिका की मंदी समाप्त करने के लिये इन्हीं स्विस बैंकों से अमेरिकी धन वापस लाने की पहल की है। अमेरिकी दबाब के आगे स्विट्जरलैंड (स्विस) सरकार ने कोई ना-नाकुर नहीं की और उनके कहे अनुसार कदम उठाने को तैयार हो गई है। इससे भारत के लिये भी रास्ते खुल गये हैं। भारत सरकार को भी अपने रुपयों को वापस लाने के लिये अमेरिका की तरह पहल करनी चाहिए थी। किन्तु भारत सरकार ने अभी तक ऐसा नहीं किया है। शायद ऐसा करने से भारत के कई ऐसे सफेदपोश लोगों की करतूतें सामने आ जाएंगी, जो सरकार में खासा प्रभाव रखते हैं। अगर ऐसा नहीं है तो फिर क्यों सरकार ने ये जानकारी नहीं प्राप्त की? सरकार की निष्क्रियता इस मामले में उसकी नीयत पर सवाल उठाने के लिए विवश कर रही है। 

लेकिन अभी सब कुछ खत्म नहीं हुआ है। सरकार चाहे तो अब भी इस मुद्दे को आगे बढ़ा सकती है। लेकिन हम जानते हैं कि सरकार यह तब तक नहीं चाहेगी जब तक उस पर जनमत का दबाव नहीं पड़ता। जब राजसत्ता संवेदनशून्य हो जाए तो समाजसत्ता की जिम्मेदारी बढ़ जाती है। इस मामले में भी स्थितियां ऐसी ही हैं।

अभी चुनाव का वक्त है और इस समय इस मसले पर जनता काफी कुछ अपने तरफ से कर सकती है और कम से कम भ्रष्ट नेताओं पर तो नकेल कसने में सफलता पाई जा सकती है। एक बार अगर भ्रष्ट नेताओं पर लगाम लग जाए तो दूसरों के भ्रष्टाचार को उजागर करना आसान हो जाएगा। क्योंकि भ्रष्टाचार के जड़ में तो सियासी लोग ही हैं। जब जड़ पर चोट की जाएगी तो दूसरे हिस्से तक इस मार का असर स्वाभाविक रूप से पड़ेगा।

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