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शुक्रवार, 8 मई 2009

संसदीय प्रणाली कितनी सफल


इंग्लैण्ड में अभी तक अलिखित संविधान के कारण परम्पराओं पर वहां का प्रशासन चल रहा है। उसके विपरीत भारत में बहुत विचार-विमर्श के बाद विधान निर्मात्री सभा ने लिखित संविधान का निर्माण किया। उनसठ वर्ष पहले हमने संसदीय प्रणाली को स्वीकार किया था। अब समय आ गया है कि हम इस प्रणाली के परिणामों पर गंभीरता से विचार करें और तय करें कि क्या भारतीय जनतंत्र को मजबूत करने वाली और भी कोई प्रणाली देश में लागू की जा सकती है। ब्रिटेन में इस प्रणाली की सफलता का बहुत बडा कारण है कि वह छोटा सा देश है, जिसमें भारत जैसी समस्याएं नहीं हैं। अपने देश में अनेक भाषाएं, अनेक पंथ, अनेक जातियां हैं। पर्वतीय प्रदेशों में सर्दी, देश के उत्तर-दक्षिणी हिस्सों में गर्मी और पूर्वोत्तर प्रदेशों में वर्षा होती एक साथ देखी जा सकती है। इसलिए भारत में इस प्रणाली का सबसे बुरा असर देश की राजनीति पर हुआ, जो दिन-प्रतिदिन ह्रासोन्मुख है। प्रजातंत्र को कमजोर करने वाली प्रवृत्तियों ने राजनीतिक हलकों में घर कर लिया है। राजनीतिक पार्टियों में प्रजातंत्र समाप्त होकर तानाशाही प्रवृत्ति बढ रही है। पार्टियों पर एक या एक से अधिक व्यक्ति का अधिकार होता जा रहा है। प्रजातांत्रिक तरीकों के बजाय पार्टी के नेता मनमाने ढंग से नियुक्तियां करते हैं। पार्टियों में चुनाव होते ही नहीं हैं। यदि दिखावे के लिए होते भी हैं तो आंतरिक चुनावों का केवल ढोंग किया जाता है। प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्रियों का भी चुनाव नहीं होता, उनकी नियुक्तियां पार्टी के एकछत्र नेता की इच्छानुसार होती है। राजनीतिक पार्टियां अपनी ही पार्टी के विधान का पालन नहीं करती हैं।
चुनावों में खंडित जनादेश आ रहे हैं। राष्ट्रीय स्तर की पार्टियों की दुर्दशा हो रही है। व्यक्तिवाद व परिवारवाद पनपने के साथ ही राजनीति का अपराधीकरण हो रहा है। जातिवाद पनपाने में सभी राजनीतिक दल लगे हैं, जिससे प्रजातंत्र के बजाय भीडतंत्र उभर रहा है। खंडित जनादेशों के कारण केंद्र में भी अस्थिर सरकारें बन-बिगड रही हैं। आम मतदाताओं की समस्याओं का समाधान नहीं होने से उनका प्रजातंत्र से मोह भंग हो रहा है। इस कारण मतदान का प्रतिशत घटता जा रहा है। अस्थिर सरकारें विकास के कार्य पूरे नहीं करवा सकतीं, इसलिए देश में विकास धीमी गति से हो रहा है। देश में राष्ट्रीय भावना व देशभक्ति की भावनाओं के बजाय क्षेत्रीय व जातिवादी भावनाओं का जोर बढ रहा है। 
दूसरी ओर अमरीका को 4 जुलाई 1775 को ब्रिटिश साम्राज्य से छुटकारा मिला। वहां सभी यूरोपीय देशों के प्रवासी रहते हैं, जिनकी अपनी-अपनी भाषाएं हैं। अमरीका के संविधान के निर्माण में 10 वर्ष लगे और संविधान 1787 में लागू हुआ। अमरीका के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी जार्ज वाशिंगटन ने ब्रिटेन की संसदीय प्रणाली को अमरीका जैसे बडे देश में अनुपयुक्त बताया तथा अध्यक्षीय प्रणाली की वकालत की। उनका तर्क था कि ब्रिटेन एक छोटा देश है, वहां संसदीय प्रणाली सफल हो सकती है, परन्तु अमरीका जैसे बडे देश में संसदीय प्रणाली सफल नहीं हो सकती, अमरीका में अब तक 41 राष्ट्रपति हुए हैं, उनमें केवल एक राष्ट्रपति निक्सन को त्यागपत्र देना पडा था। शेष सभी राष्ट्रपतियों ने अपना कार्यकाल पूरा किया। इस कारण विकास की गति में अवरोध उत्पन्न नहीं हुआ और अमरीका एक विकसित देश बना। इतना ही नहीं विभिन्न यूरोपीय देशों के प्रवासियों व अमरीका के मूल निवासियों में मजबूत राष्ट्रीय भावना पनपी, जिसके कारण देश मजबूत हुआ।
उपरोक्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि संसदीय प्रणाली को स्वीकार करने पर भी भारत ने उतनी प्रगति नहीं की जितनी की आवश्यकता है। इस प्रणाली के कारण देश प्रगति के बजाय या तो स्थिर है या अधोगति की ओर जा रहा है। इसलिए समय आ गया है कि हम इस विषय पर गंभीरता से विचार करें एवं देश की परिस्थितियों के अनुकूल प्रणाली की खोज करें, ताकि देश त्वरित गति से आगे बढे।

6 टिप्‍पणियां:

  1. इंसान का लेखन उसके विचारों से परिचित कराता है। ब्लोगिंग की दुनियां में आपका आना अच्छा रहा, स्वागत है. कुछ ही दिनों पहले ऐसा हमारा भी हुआ था. पिछले कुछ अरसे से खुले मंच पर समाज सेवियों का सामाजिक अंकेषण करने की धुन सवार हुई है, हो सकता है, इसमे भी आपके द्वारा लिखत-पडत की जरुरत हो?

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  2. बहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।

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  3. अच्छी जानकारी............चिट्ठे की उन्नती हो......हम एसी कामना करते हैं|

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  4. हिंदी ब्लॉग की दुनिया में आपका तहेदिल से स्वागत है...

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  5. आप की रचना प्रशंसा के योग्य है . लिखते रहिये
    चिटठा जगत मैं आप का स्वागत है

    गार्गी

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