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सोमवार, 11 मई 2009

कैसे लौटे काली कमाई


दिल्ली में बनने वाली नई केन्द्रीय सरकार के समक्ष एक चुनौती यह भी होगी कि स्विट्जरलैंड जैसे देशों की बैंकों में जमा भारतीयों की काली कमाई को कैसे वापस स्वदेश लाया जाए। यह किसी से छिपा नहीं है कि स्वतंत्रता के बाद से ही विश्व के 70 देशों की बैंकों में भारत का कालाधन जमा होता रहा है। समय-समय पर इसके अनुमान तो लगाए जाते हैं, लेकिन उनके सही होने को कोई प्रमाणित नहीं कर सकता। पिछले साल अखबारों में स्विस बैंकर्स एसोसिएशन की 2006 की वार्षिक रिपोर्ट के हवाले से छपा था कि स्विस बैंकों में भारत के नागरिकों के 1.45 खरब अमरीकी डालर जमा हैं। यह रकम किसी अन्य देश के नागरिकों की रकम की तुलना में बहुत ज्यादा है। दरअसल विश्लेषकों ने हिसाब लगाया कि शेष सभी देशों के नागरिकों की वहां कुल जमा रकम से भी यह अधिक है।

अर्थशाçस्त्रयों का मत है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद पहले चार दशकों में तो आयकर की दरें बहुत अधिक थीं और कर वसूली ढांचा कमजोर, इसलिए कर चोरी की संस्कृति विकसित हुई। आयात पर बेतहाशा करों के कारण तस्करी खूब होती थी, जिससे समानांतर काली अर्थव्यवस्था मजबूत हुई। सरकार के सभी विभागों में भ्रष्टाचार का स्तर बेहद बढ़ने और कर चोरों के लिए स्वर्ग माने जाने वाले देशों में बैंकों से गोपनीयता के नाम पर सुरक्षा मिलने के कारण उनमें भारतीयों द्वारा कालाधन जमा कराने का सिलसिला शुरू हुआ। जैन हवाला कांड में बरामद मोटी रकम और दस्तावेजों से बढ़ते हवाला कारोबार का खुलासा हुआ था। अर्थव्यवस्था के उदारीकरण और कर की दरें घटने के बाद पिछली सदी के आखिरी दशक में उम्मीद बंधी थी कि कर चोरी और भारत से बाहर कालाधन भेजने की प्रवृत्ति पर लगाम लगेगी। लगता है कि यह उम्मीद पूरी नहीं हुई है। हालांकि करदाता और प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष करों से मिलने वाली रकम में कई गुना बढ़ोतरी हुई है, लेकिन स्पष्ट है कि इस दिशा में अभी बहुत कुछ करने की जरू रत है। विदेशी मुद्रा विनिमय कानून के उल्लंघनों का पता लगाने के लिए प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) पहले ही बना हुआ है। 

खेद की बात है कि इसका रिकार्ड और उपलब्धियां बहुत खराब रही हैं। यह समय-समय पर विवादों में घिरता रहा है और इसके आला अधिकारी भ्रष्टाचार के आरोपों में उलझते रहे हैं। इसकी एक बड़ी कमी यह रही है कि इसका प्रमुख कोई आई.ए.एस. ही हो सकता है। मैं इसके कई निदेशक अधिकारियों को व्यक्तिगत रू प से जानता हूं। वे नि:संदेह होशियार, समर्पित और ईमानदार अधिकारी रहे हैं, लेकिन वे इस काले धंधे की गहराई तक नहीं पहुंच पाते। दो वर्ष का कार्यकाल किसी विशिष्ट जांच एजेंसी के प्रमुख के लिए बहुत कम होता है। इस काम को कस्टम, आयकर और पुलिस के अधिकारी ज्यादा बेहतर तरीके से अंजाम दे सकते हैं।

प्रवर्तन निदेशालय के जांचकर्ता के लिए विशेषज्ञता और क्षमता का जो स्तर अपेक्षित है, उसे निर्मित नहीं किया जा सकता। इस बुराई पर काबू पाने में भारतीय रिजर्व बैंक, कस्टम्स, सीबीआई और सेबी की भूमिका भी महत्वपूर्ण है। नई सरकार को इसके लिए दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति दर्शानी होगी तथा ईडी को मजबूत और सक्षम बनाने के लिए गंभीरता से प्रयास करने होंगे, तभी इस मोटी रकम का एक अंश भारत वापस लाने में सफलता मिल पाएगी। विशेषज्ञों की टोली बनाकर इस काम के लिए ठोस योजना बनानी होगी।

राम जेठमलानी, केपीएसगिल, सुभाष कश्यप आदि ने उच्चतम न्यायालय के समक्ष यह मामला उठाया है। इस मामले की सुनवाई के दौरान पुणे के हसन अली खां और उनके सहयोगी कोलकाता के काशीनाथ तापडि़या के मामले का उल्लेख हुआ। वर्ष 2007 में आयकर छापे के दौरान खां के घर से बरामद कम्प्यूटर में स्विट्जरलैंड के यूबीएस बैंक में जमा 70 हजार करोड़ रूपए का ब्यौरा था।

उच्चतम न्यायालय की तीन सदस्यीय पीठ ने इस तथ्य पर नाराजगी जताई कि खां वगैरह के खिलाफ कालेधन कानून के तहत कार्रवाई क्यों शुरू नहीं की गई। कर चोरी और अवैध तरीकों से जुटाई गई रकम दूसरे देशों के बैंकों में जमा करने का मामला हाल ही जी-20 देशों की बैठक में भी उठा था। सदस्य देशों ने इस प्रवृत्ति पर गहरी चिंता जताते हुए ऎसी गतिविधियों पर अंकुश के लिए संबद्ध देशों पर गोपनीयता नियमों में संशोधन के वास्ते दबाव बनाने का निर्णय किया था। विभिन्न देशों के कानूनों में संशोधन में लम्बा समय लगेगा, इसलिए सक्रिय पहल के जरिए इस समस्या से निपटा जा सकता है। अमरीका के आंतरिक राजस्व विभाग के अधिकारियों की कोशिशों के चलते अमरीका की एक अदालत ने यूबीएस बैंक पर 78 करोड़ डालर का जुर्माना ठोका है। बैंक जुर्माना देने के साथ ही अपने 47 हजार अमरीकी खातेदारों के नाम बताने को राजी हो गया है। इसके लिए उसने कुछ मोहलत मांगी है। आयरलैंड ने भी जर्मनी की बैंकों से 60 लाख डालर वसूले हैं। यह काम दुष्कर जरू र है लेकिन किसी व्यक्ति की असली परीक्षा तभी होती है जब उसे मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। यही बात राष्ट्रों पर भी लागू होती है। यह वक्त ही बताएगा कि क्या नई सरकार अपने इरादे और क्षमता दिखाकर कुछ करती है या इसे भी रोजमर्रा की समस्याओं की तरह मानती है। कई अहम मसलों पर भूतकाल में पूरे मनोयोग से कदम नहीं उठाए गए। उच्चतम न्यायालय में भी इस मामले पर सुनवाई होनी है। हाल के दिनों में देश से जुड़े ऎसे ही महत्वपूर्ण मुद्दों पर अदालत कदम उठा चुकी है। देखते हैं कि इस मामले में वह क्या करती है।

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