आदमी बेशक चांद पर चहलकदमी कर आया है और मंगल पर आशियाना बनाने के बेहद करीब हो, लेकिन हरियाणा के गोत्र विवाद को देखने से नहीं लगता कि दुनिया में कोई ज्यादा बदलाव आया है। पुरानी परंपराएं और चौधराहट इस कदर हावी है कि इंसान की जिंदगी भी उसके सामने गौण होकर रह गई है। पुरानी परंपराओं का निर्वाहन कर रही पंचायतें (खाप) पुलिस-प्रशासन और सरकार तो दूर, अदालत को भी ठेंगे पर रखती हैं। जींद में वेदपाल की हत्या इस बात को साबित करती है कि मूंछ के लिए चौधरी किसी भी हद तक जा सकते हैं। उनके लिए सदियों से चले आ रहे रीति रिवाज और मान्यता सर्वोपरि हैं। गोत्र विवाद आए दिन होते हैं, लेकिन सरकार इनका निबटारा करने की बजाए खाप के सामने नतमस्तक होती नजर आती है। हो भी क्यों न, जाट जो नाराज हो जाएंगे? खाप का मतलब कई गांवों का एक बड़ा समूह होता है।
हरियाणा में जो खाप शक्तिशाली मानी जाती हैं उनमें मलिक (गठवाला), पूनिया, श्योराण तथा सांगवान शामिल हैं। खाप में जो मामले विचार के लिए लाए जाते हैं उनमें पुरातन परंपराओं को बहाल रखने की कवायद प्रमुख है। खाप इतनी ज्यादा शक्तिशाली होती है कि बड़े से बड़ा राजनीतिक भी उसके फरमान की अनदेखी नहीं कर सकता है। हाल के वर्षो में खाप जिस चीज के लिए ज्यादा चर्चा में आई हैं उनमें गोत्र प्रमुख है। हर खाप ने सम गोत्र में विवाह निषिद्ध घोषित कर रखा है। श्योराण पच्चीसी के प्रधान बिजेंद्र सिंह कहते हैं कि विवाह के समय अपने साथ मां, दादी के गोत्र को बचाना होता है। बिजेंद्र कहते हैं कि परंपराएं सोच समझकर बनाई गई हैं। सामाजिक विकृतियों को रोकने के लिए ही इन्हें बनाया गया है। झगड़ा उस समय शुरू होता है जब आजाद ख्याल युवक-युवती परंपरा के खिलाफ जाकर अपनी दुनिया बसाने की जुगत भिड़ाते हैं।
पुलिस के एक अधिकारी कहते हैं कि गोत्र एक हजार से ज्यादा हंैं लिहाजा इसका ख्याल रखना भी मुश्किल होता है। उनका कहना है कि सब कुछ जानने के बाद भी पुलिस व प्रशासन मूक दर्शक ही बना रह जाता है क्योंकि सरकार कोई भी हो, जाट समुदाय के गुस्से से सभी डरते हैं, यही वजह है कि खाप के आगे कानून व्यवस्था पंगु हो जाती है। प्रेम विवाह पर भारी चौधराहट और परंपराएं
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