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शहरों में सामाजिक बदलाव की बयार के बीच गांवों में अब भी दलित समाज मुख्यधारा में से अलग थलग पडा हुआ है। दलितों की सुरक्षा के लिए कई कानून बनाने के बावजूद उन्हें अब भी सामाजिक समानता हासिल नहीं हो पा रही। भीलवाडा जिले में दलित अत्याचार की बढती घटनाओं ने प्रशासन की चिन्ता बढा दी है। दलित समुदाय में अरक्षा के भाव पनपने से गांवों में सामाजिक सौहार्द का माहौल भी बिगडने का खतरा है। जहाजपुर तहसील के ऊंचा गांव में दलित दूल्हे की बिन्दोली पर तेजाब फेंकने से दूल्हे सहित छह जने झुलस गए। कुछ दिन पूर्व हमीरगढ क्षेत्र के तख्तपुरा गांव में भी एक दलित दूल्हे को घोडी से उतार दिया गया। भीलवाडा जिले में एक यज्ञ में दलितों को शामिल करने को लेकर भी विवाद की स्थिति है। दलितों पर अत्याचार की घटनाएं अन्य जिलों में भी सामने आती रहती हैं। ऎसी घटनाओं पर स्वार्थ की रोटियां सेंकने वाले नेताओं व संगठनों की भी कमी नहीं है। इनसे दलितों को भी सावधान रहना होगा। सरकार को भी यह समझना होगा कि दलित सुरक्षा के कानून बना देने से उनको समाज में व्यावहारिक धरातल पर समानता का हक नहीं हासिल होगा। इसके लिए जरूरत सामाजिक व्यवस्था में आमूलचूल बदलाव की है। दलित समाज की बिन्दोली को रोकने के पीछे के कारणों को खोजना होगा। दलितों को बराबरी का नहीं मानने वाले लोगों को कानून की लाठी से हांकने के बजाय सामाजिक स्तर पर उनकी मानसिकता बदलनी होगी। गांव में दलितों को बराबरी का हक नहीं देने वालों को भी अब समझ लेना होगा कि जमाना बदल चुका। अब किसी जाति या व्यक्ति को अछूत या नीचे के स्तर का नहीं माना जा सकता। दलितों में सुरक्षा का भाव जागृत करने के लिए प्रशासन के साथ गांव के प्रभावशाली तबकों को भी पहल करनी होगी।
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