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ये बुराइयां पहले की अपेक्षा कम नहीं हुई हैं, बल्कि बढी हैं। इनके रू प, प्रकार और किस्मों में अन्तर आया है। द्यूत अब कई रू पों में देखने को मिलता है। लॉटरी आदि के जरिए सरकार खुद इस तरह के उपक्रम करती है। टीवी के कई चैनल भी इस तरह के इनामी प्रोग्राम संचालित करते हैं। मांस उत्पादन के कई प्रांतों में कारखाने लगे हुए हैं। इसकी खपत को देखते हुए सरकार कत्लखानों की संख्या बढाने पर विचार कर रही है। वेश्यावृति का धंधा करने वालों की बडे शहरों में एक पूरी कॉलोनी बस गई है। आज की भाषा में इसे "रैड लाइट एरिया" कहते हैं। देश में यौन रोगों के और असाध्य रोगों के लिए सर्वाधिक उत्तरदायी ये ही हैं। शराब के बारे में कुछ न कहना ही ठीक है। सरकार द्वारा कानूनी मान्यता प्राप्त हो जाने के बाद इसकी खपत शहरों और गांवों में समान रू प से है। समाज में अपराध और हिंसा को सर्वाधिक बढावा इस नशीले पदार्थ से ही मिला है। बहुधा ऎसा होता है कि हमारे गांव में प्रवेश करने से पूर्व स्वागत द्वार के पहले "देशी शराब की दुकान" का बोर्ड दिखाई देता है। राजस्थान में कहावत है- "गांव की साख बाडां भरै।" बाड गांव का पहला दरवाजा या प्रवेश द्वार होती है। गांव में शराब का ठेका है तो सच्चरित्रता और नैतिकता को वहां कितना महत्व मिलेगा, यह सोचने की बात है। अभी इन दिनों में एक-दो सप्ताह के बीच हम गांवों में गए तो वहां मेरे पास कुछ बहिनें आई, कुछ भाई भी आए। उनकी ओर से प्रार्थना की गई कि महाराज! जैसे भी हो, शराब की लत से छुटकारा दिलाएं। मैंने कहा- "क्या हुआ उन बहनों ने बताया कि शराब पीकर घर में उत्पात करना और हम लोगों की, बच्चों की पिटाई करना रोज की बात है। घर जैसे नरक बन गया है।"
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