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गुरुवार, 16 जुलाई 2009

आखिर कब तक ?


दस साल पहले हमने कारगिल युद्ध का सामना किया था। देश ने लगभग 527 जवान खोकर इस युद्ध में दुश्मन देश पाकिस्तान को परास्त कर दिया था। लेकिन नक्सलवाद के रूप में हम न जाने कितने कारगिल जैसे युद्ध लड़ चुके हैं और हमें कोई सफलता भी नहीं मिली है। वैसे तो देश में नक्सलवाद की लड़ाई दो दशक से भी पुरानी है, लेकिन पिछले पांच सालों पर नजर डालें तो तीन हजार से अधिक लोग इस लड़ाई की भेंट चढ़ चुके हैं। इतना ही नहीं हजार से अधिक जवान भी शहीद हो चुके हैं। सिर्फ इस साल ही अब तक 6 महीनों में 230 जवान समेत लगभग 485 लोगों की मौत हो चुकी है। देश में नक्सलवाद पर पेश है एक खास रिपोर्ट..

इस साल सबसे अधिक

देश में नक्सल प्रॉब्लम दिन पर दिन विकराल रूप लेती जा रही है। वैसे तो यह प्रॉब्लम शुरू हुई थी सत्तार के दशक में लेकिन दो दशक पहले इसका हिंसक रूप सामने आया। पिछले पांच सालों के आंकड़ों पर नजर डालें तो इस साल सबसे अधिक घटनाएं सामने आई हैं। इस साल के 6 महीनों में ही 1130 घटनाएं हो चुकी हैं। जबकि लास्ट इयर सेम पीरियड में 766 मामले सामने आए थे। इतना ही नहीं इस वर्ष अब तक कुछ 485 लोगों की मौत हो चुकी है जिनमें 230 जवान और 255 आम नागरिक थे।

37000 सोल्जर्स

नक्सलवाद की यह लड़ाई कितनी बड़ी है इस बात का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि इस समय लगभग 37 बटालियन पैरामिलिट्री फोर्स यानी 37000 सोल्जर्स जंग से लड़ने के लिए लगाए गए हैं।

छत्ताीसगढ़ में अधि

वैसे तो देश के लगभग 12 स्टेट नक्सलवाद की इस समस्या से जूझ रहे हैं लेकिन छत्ताीसगढ़ में प्रॉब्लम सबसे अधिक सीरियस बनी हुई है। पिछले दिनों में यहां एक नक्सली हमले में एसपी समेत 36 लोगों की जान चली गई थी। यहां की स्थिति का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि पूरे देश में नक्सलवाद से मुकाबले के लिए लगीं कुछ 37 बटालियन में 17 बटालियन यानी 17 हजार जवान अकेले छत्ताीसगढ़ में लगाए गए हैं। साथ ही देश में कुल होने वाली नक्सली घटनाओं में 82 परसेंट घटनाएं छत्ताीसगढ़, बिहार, झारखंड और उड़ीसा में संयुक्त रूप से होती हैं। इसके साथ ही कुल होने वाली कैजुअल्टीज का 77 परसेंट इन्हीं स्टेट्स में हुई हैं।

इतिहास के झरोखे से

नक्सलाइट्स टर्म वेस्ट बंगाल के एक स्माल विलेज नक्सलवारी से आया है। जहां कम्युनिस्ट पार्टी आफ इंडिया का एक भाग चारू मजूमदार और कानू सांन्याल के नेतृत्व में 1967 में हिंसक हो गया, जिसने सीपीआई लीडरशीप के खिलाफ ही रिवेल्यूशनरी अपोजिशन डेवलप करने की कोशिश की। विद्रोह की शुरुआत 25 मई 1967 में नक्सलबारी विलेज में उस समय हुई जब एक किसान पर भूमि विवाद को लेकर हमला किया गया। मजूमदार चीन के माओ जेडांग से इंस्पायर था और भारतीय किसानों और लोअर क्लास की जमीनों को गिरवी रखने के लिए वह गवर्नमेंट और अपर क्लास को जिम्मेदार ठहराने लगा। इसके बाद नक्सलाइट मूवमेंट का जन्म हुआ। 1967 में नक्सलाइट ने आल इंडिया कोआर्डिनेशन कमेटी आफ कम्युनिस्ट रिवोल्यूशनरीज संगठित किया जो बाद में सीपीआई (एम) में बंट गया। 1969 में एआईसीसीसीआर ने कम्युनिस्ट पार्टी आफ इंडिया (मार्सिस्ट-लेनिनिस्ट) को जन्म दिया। प्रेक्टिकली धीरे-धीर सभी नक्सलाइट ग्रुप्स अपने ओरिजिन सीपीआई (एमएल) से पहचाने जाने लगे। 1980 में तीस नक्सलाइट ग्रुप्स 30 हजार कंबाइंड मेंबरशिप के साथ सक्रिय हुआ। भूमि और सामान्तवाद की यह लड़ाई धीरे-धीरे खूनी जंग का रूप लेने लगी। नक्स्लवाड़ी से पूरा वेस्ट बंगाल फिर उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, झारखंड, बिहारी, छत्ताीसगढ़ के साथ देश के लगभग एक दर्जन राज्यों में यह एक समस्या के रूप में सामने आया।

नक्सल का आतंक बढ़ता ही जा रहा है. नक्सली आए दिन अटैक कर रहे हैं. नक्सली अक्सर खाकी वर्दी को अपना निशाना बनाते हैं. वामपंथी नक्सलवाद देश के 630 डिस्ट्रिक्ट में से 180 को अपनी चपेट में ले चुका है। देशभर में इनके करीब 22 हजार कैडर हैं।

झारखंड

पूरा स्टेट माओवाद की चपेट में, लेकिन 24 में से 16 डिस्ट्रिक्ट बुरी तरह पीड़ित हैं. स्टेट में माओवादियों के छह प्रमुख ग्रुप काम कर रहे हैं. तृतीया प्रस्तुति कमेटी, झारखंड प्रस्तुति कमेटी, द पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट आफ इंडिया, झारखंड जनसंघर्ष मुक्ति मोर्चा, संयुक्त प्रगतिशील मोर्चा वसीपीआई (एम)।

उड़ीसा

यह स्टेट भी अधिकांश लाल रंग में रंग चुका है, लेकिन कुल 30 डिस्ट्रिक्ट्स में से आंध्र प्रदेश व छत्ताीसगढ़ से सटी सीमा के 17 डिस्ट्रिक्ट माओवाद से भयंकर रुप से ग्रस्त हैं। दक्षिणी उड़ीसा के मलकानगिरि, कोरापुट, रायगढ़, गजपति डिस्ट्रिक्ट्स में इनकी मजबूत उपस्थिति है। आदिवासी बहुल्य कंधमाल में भी अच्छा नेटवर्क है। उड़ीसा के डिस्ट्रिक्ट्स सुंदरगढ़, देवगढ़, संभलपुर बौध और अंगुल में तेजी से फैलाव।

बिहार

इस स्टेट के 38 में से 19 डिस्ट्रिक्ट्स में अच्छा खासा प्रभाव, पहले से इनकी मौजूदगी वाले पटना, गया, औरंगाबाद, भभुआ, रोहतास ओर जहानाबाद के अलावा अब इनका फैलाव उत्तार की तरफ हो रहा है। पश्चिमी चंपारण, पू. चंपारण, शिवहर, सीतामढ़ी, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, मघुबनी इनके नए विस्तार क्षेत्र हैं. सहरसा, वेगूसराय, वैशाली और उत्तार प्रदेश से सटे एरियाज में भी इनका प्रभाव है।

छत्ताीसगढ़

30 साल से माओवाद समस्या ने खनिज संपदा से धनी इस स्टेट की हालत को बदतर करने में मेन रोल निभाया है। 10 डिस्ट्रिक्ट्स के 150 पुलिस थाने गंभीर रुप से संवेदनशील. दंतेवाड़ा, कांकेर, बस्तर, बलरामपुर ओर सारगुजा डिस्ट्रिक्ट्स में माओवादियों की जड़े मजबूत।

आंध्र प्रदेश

स्टेट के दंडकारण्य एरिया में इनका खतरा बना हुआ है. विशाखापट्नम, विजयानगरम, खम्माम और पूर्वी गोदावरी डिस्ट्रिक्ट्स में मजबूत नेटवर्क।

महाराष्ट्र

गढ़चिरौली इनका गढ़ है जबकि चंद्रपुर गोडिंया, यवतमाल, भंडारा और नांदेड़ जैसे डिस्ट्रिक्ट नक्सलग्रस्त घोषित। ये सभी जिले आंध्र प्रदेश, छत्ताीसगढ़ और मध्य प्रदेश के नक्सल प्रभावित एरियाज से सटे हुए हैं

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